Tuesday, 30 July 2019

मेहनत

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कर तू मेहनत इतनी की मिसाल बन जाए ।।



लोगों की जुबान पर सिर्फ तू ही तू छा जाए ।।



जब बातें हो महफ़िल में नामुमकिन की,



तो नामुमकिन को काटने वाली तू तलवार बन जाए ।।



डर भी तुझसे डर के 100 मील दूर भाग जाए,



न हो तेरी बराबरी सिकन्दर से उससे भी ऊपर की तुझे पहचान मिल जाए ।।



खुद में भर ले इतनी आग जो बुझाये न बुझे ।।



बना ले खुद को पहाड़ जो गिराए न गिरे ।।



समुद्र की गहराई नाप ले तू ऐसे हौसले की दीवार तुझमें बन जाए ।।



मुंहफट

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Monday, 29 July 2019

बड़ा भाई


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उठ जा खड़ा हो बहुत काम बाकी है ।।
अपने छोटो के लिए हासिल करना तुझे मुकाम बाकी है ।।

भूल जा अपनी तकलीफों को बना ले उसे ताकत ।।
पीछे छोड़ उन पथरीली डगर को ले चल अपनो को खुशियों के आशियाने तक ।।

अरे तू सोच में क्यों डूबा है अपने अतीत को लेकर ।।
कर नए सफर की शुरुआत जो गुजरे शिखर से होकर ।।

तेरे अपने देख न तेरे भरोसे बैठे है उनकी ताकत तो बन ।।

कमजोर पड़ जाएगा तू खुद ही तो कैसे पढ़ेगा तू उनका मन ।।

मन में बसे हर कंकड़ को तू निकाल के फेक ।।
मन में रख विश्वास और इरादे कर नेक ।।

बड़ा है जरा बड़े होने का फर्ज तो निभा ।।
भटक न जाए तेरे छोटे, चल ज्ञान की आंधी चला औऱ बिठा दे उनके लिए अनंतकाल की सभा ।।


कवि : शशांक शर्मा (मुँहफट)








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Wednesday, 3 July 2019

कलम और पन्ना

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कांपती मेरी उंगलियां, कलम में स्याही बची है कम...

लिखना है अभी पूरा पन्ना इस बात का है गम...
दिल कहे लड़ जाने दो आज कलम और पन्ने को एक दूजे से..

देखते हैं कौन होगा पहले खतम, किसको सहना पड़ेगा जुदाई का गम...
कलम कहे जनाब काश, आपकी बात भी पूरी हो जाए और मेरा पन्ना मुझसे लिपट कर सो जाये. .

पन्ने ने कहा कलम से ज्वाला जला है जो तेरे सीने में उसे निकाल भले मेरी मौत क्यों न हो जाये....
आँसू पोछ कलम ने शुरुआत की रावण की कहानी से...

शब्द था पहला , "वो लाख गुना अच्छा था इस ज़माने से "
बोला रावण है यूँही बदनाम क्या राम महान ?

वाटिका में बैठी सीता या अग्नि में कूदी सीता
बोलो किसको मिला था ज्यादा सम्मान?

ना तिरस्कार सहा रावण की नगरी में न ही सही कोई शारीरिक पीड़ा...
अत्याचार हुआ होता तो न सहती माँ अम्बे उनकी पीड़ा और न चुप बैठे माँ सरस्वती बजाती वीणा..


दुखी थी जब वे अकेली वाटिका के पेड़ के नीचे तो दिल की बात सुनी नगरी की दैत्या ने
दैत्या कैसे कहूं उसे जो बैठती थी मां सीता के साथ एक कोने में...

बाहुबली था रावण उसको किस बात का डर था
लेकिन बाहुबल से स्त्री को पाने वाला उसकी नजर में नामर्द था...


हठी था रावण पर चिरित्र पर उसके दाग न था ।।
आचरण था बुरा उसका पर उसमें हवस की आग न था


अभी बात पूरी भी न हो पाई थी पन्ने ने अपना दम तोड़ दिया ।।
कहानी को अधूरा कर उसने कलम का साथ छोड़ दिया ।।


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