उठ जा खड़ा हो बहुत काम बाकी है ।।
अपने छोटो के लिए हासिल करना तुझे मुकाम बाकी है ।।
भूल जा अपनी तकलीफों को बना ले उसे ताकत ।।
पीछे छोड़ उन पथरीली डगर को ले चल अपनो को खुशियों के आशियाने तक ।।
अरे तू सोच में क्यों डूबा है अपने अतीत को लेकर ।।
कर नए सफर की शुरुआत जो गुजरे शिखर से होकर ।।
तेरे अपने देख न तेरे भरोसे बैठे है उनकी ताकत तो बन ।।
कमजोर पड़ जाएगा तू खुद ही तो कैसे पढ़ेगा तू उनका मन ।।
मन में बसे हर कंकड़ को तू निकाल के फेक ।।
मन में रख विश्वास और इरादे कर नेक ।।
बड़ा है जरा बड़े होने का फर्ज तो निभा ।।
भटक न जाए तेरे छोटे, चल ज्ञान की आंधी चला औऱ बिठा दे उनके लिए अनंतकाल की सभा ।।
कवि : शशांक शर्मा (मुँहफट)
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लाजवाब भाई
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
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